मंज़िल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंख होने से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है !
दिव्यांग छात्रा प्रांशी मित्तल (16) के पास भले ही जन्म से ही दांया हाथ नहीं हो लेकिन मजबूत इरादे के दम पर उसने इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी प्रवेश परीक्षा जेईई-मेन में केवल बांये हाथ से सफलता अर्जित की। बचपन से केवल एक हाथ के सहारे बड़ी हुई दिव्यांग छात्रा प्रांशी को अफसोस नहीं कि वह दिव्यांग है। उसके पास हाथ नहीं है, लेकिन हौसला दोगुना है। मन में आगे बढ़ने की क्षमता है। केवल एक हाथ से पेपर साल्व करते हुए उसने जेईई मेन-2016 में दिव्यांग केटेगरी में जेईई-एडवांस्ड के लिये क्वालिफाई किया।
राजस्थान राज्य के धौलपुर जिले के बाडी कस्बे में एक दुकान चलाने वाले पिता रामअवतार ने बताया कि घर की आर्थिक हालात अच्छी नहीं थी लेकिन बेटी बचपन से पढ़ाई में अच्छी रही। राजस्थान बोर्ड में उसे क्लास-10 में 81 प्रतिशत अंक मिले। मैथ्स अच्छी होने से वह भविष्य में साइंटिस्ट बनना चाहती है, इसलिए क्लास-11वीं में उसने एलन कॅरिअर इंस्टीट्यूट, कोटा में प्रवेश लिया। इन्स्टीट्यूट के निदेशक श्री नवीन माहेश्वरी ने उसकी प्रतिभा को देखते हुए दोनों वर्ष 50 प्रतिशत स्काॅलरशिप देकर उत्साह बढ़ाया। क्लास के बाद हाॅस्टल जाकर वह 6 घंटे नियमित पढ़ाई करती रही। हाॅस्टल में सभी गल्र्स ने उसका हौसला बढ़ाया। संस्थान में शिक्षकों ने उसे बहुत सपोर्ट किया। उसने कहा कि एलन में शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार देने की परम्परा देखने को मिली।
प्रांशी कहती है कि डाॅ.एपीजे अब्दुल कलाम के जीवन से वह बहुत प्रभावित है। हम खुली आंखों से भी अच्छे भविष्य के सपने देख सकते हैं। क्लास-10वीं में उसने साइंटिस्ट बनने का सपना देखा और आईआईटी की कोचिंग के लिए कोटा आ गई। इन दिनों जेईई-एडवांस्ड की तैयारी में जुटी है। वह आईआईटी से कम्प्यूटर सांइस में बीटेक करके आगे रिसर्च करना चाहती है। मां साधना ने बताया कि हमे गर्व है कि बेटी ने कोटा में अकेले रहते हुए एक हाथ से अपनी प्रतिभा को साबित कर दिखाया। जन्म से उसका दांया हाथ नहीं है लेकिन वह कभी हिम्मत नहीं हारी। तीन बच्चों में वह सबसे बड़ी है और दोनों भाई-बहिन को भी अच्छा पढ़ाना चाहती है। उसकी सफलता ने हमें भी प्रेरित किया है।